चमोली एवलांच के बाद उत्तराखंड पर मंडरा रहा एक और खतरा, 13 ग्लेशियर झीलें बन सकती हैं तबाही का कारण
उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा क्षेत्र में हाल ही में हुए हिमस्खलन के बाद राज्य में ग्लेशियर झीलों को लेकर चिंता बढ़ गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने राज्य में 13 ग्लेशियर झीलों की पहचान की है, जिनमें से पांच को उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन झीलों का सही समय पर अध्ययन और निगरानी नहीं की गई तो भविष्य में ये झीलें बड़े आपदा का कारण बन सकती हैं।
अब तक चमोली जिले की वसुधारा झील का अध्ययन पूरा हो चुका है और इसके आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा है। वहीं, अब पिथौरागढ़ जिले की चार उच्च जोखिम वाली झीलों का अध्ययन किया जाएगा। इन झीलों में पानी की मात्रा और प्रवाह को लेकर विशेष परीक्षण किए जाएंगे ताकि किसी भी संभावित खतरे का आकलन किया जा सके।
उत्तराखंड में बढ़ता खतरा
उत्तराखंड एक भौगोलिक रूप से संवेदनशील राज्य है, जहां लगातार भूस्खलन, हिमस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाएं देखने को मिलती हैं। खासकर केदारनाथ त्रासदी (2013) के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियर झीलों पर शोध और अध्ययन बढ़ा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ग्लेशियर पिघलने के कारण झीलों में पानी की मात्रा तेजी से बढ़ रही है, जिससे इनके टूटने का खतरा बना रहता है। अगर समय रहते इन झीलों की स्थिति का सही से आकलन नहीं किया गया, तो यह बड़ी आपदा का रूप ले सकती हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में 13 ग्लेशियर झीलों की पहचान की है। इनमें से पांच झीलों को उच्च जोखिम वाली माना गया है। पहले चरण में इन्हीं पांच झीलों का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है, ताकि इनके जलस्तर और संभावित खतरे का सही मूल्यांकन किया जा सके।
चमोली और पिथौरागढ़ की झीलों पर विशेष ध्यान
अब उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA) ने पिथौरागढ़ जिले की चार उच्च जोखिम वाली झीलों का अध्ययन शुरू करने का निर्णय लिया है। इससे पहले, चमोली जिले की वसुधारा झील का अध्ययन विशेषज्ञों की एक टीम कर चुकी है। इस झील की लंबाई 900 मीटर, चौड़ाई 600 मीटर और गहराई 38-40 मीटर बताई गई है। इस झील से फिलहाल दो स्थानों से पानी का प्रवाह हो रहा है, लेकिन भविष्य में इसमें बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की मानें तो 2013 की केदारनाथ त्रासदी में चौराबाड़ी ग्लेशियर झील के टूटने को एक बड़ी वजह माना गया था। इस घटना के बाद से ही उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर झीलों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। सरकार अब इन झीलों की नियमित निगरानी के लिए नई तकनीकों का उपयोग करने पर विचार कर रही है।
विशेषज्ञों की टीम कर रही निगरानी
वसुधारा झील का अध्ययन करने वाली टीम में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, उत्तराखंड भूस्खलन प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र, वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, आईटीबीपी, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के विशेषज्ञ शामिल थे। यह 15 सदस्यीय टीम झीलों की संरचना, जल निकासी प्रणाली और आसपास की स्थिरता का अध्ययन कर रही है।
अब राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पिथौरागढ़ की झीलों के अध्ययन के लिए एक नई विशेषज्ञ टीम गठित कर रहा है। इस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर झीलों की निगरानी और सुरक्षा उपायों को और मजबूत किया जाएगा।
चिह्नित की गई झीलें
जिला – झील
चमोली: वसुधारा व तीन अन्य
उत्तरकाशी: केदार ताल
बागेश्वर: नागकुंड
पिथौरागढ़: मबांग, पियुग्रू व चार अन्य
टिहरी: मसूरी ताल
सरकार की तैयारियां और भविष्य की योजनाएं
उत्तराखंड सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग इन झीलों की निगरानी के लिए नए उपकरण और तकनीकों का उपयोग करने की योजना बना रहा है। संभावित खतरों से बचने के लिए सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन सर्वेक्षण और अन्य भू-वैज्ञानिक अध्ययनों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन को भी इन झीलों के जलस्तर की नियमित जांच के निर्देश दिए गए हैं।
सरकार का मानना है कि समय रहते उचित कदम उठाए गए तो इन झीलों से होने वाले खतरे को कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में ग्लेशियर झीलों से जुड़ी आपदाओं को रोकने के लिए सतत निगरानी और सुरक्षा उपायों को मजबूत करना आवश्यक है।