पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट की रोक को बताया संवैधानिक संकट – यशपाल आर्य
देहरादून। उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर आरक्षण प्रक्रिया पर हाईकोर्ट की रोक के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस मुद्दे को संवैधानिक संकट करार देते हुए राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाया जाना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सरकार ने संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों की घोर अनदेखी की है।
आर्य ने कहा कि सरकार ने पंचायत चुनावों में सीटों के आरक्षण को लेकर न केवल नियमों और परंपराओं को नजरअंदाज किया, बल्कि इसे अपने राजनीतिक हितों के अनुरूप ढालने का प्रयास भी किया। “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने तय प्रक्रिया का पालन न कर संवैधानिक प्रावधानों के साथ खिलवाड़ किया है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने जोर देकर कहा कि विपक्ष पहले दिन से इस मुद्दे पर सरकार को आगाह करता रहा है। “हम लगातार कह रहे थे कि सरकार ने न तो समय पर आरक्षण नियमावली जारी की और न ही पंचायत चुनावों के लिए वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया। शासनादेश का गजट नोटिफिकेशन समय पर न आना इस पूरे प्रकरण को अवैध बनाता है,” आर्य ने कहा।
नेता प्रतिपक्ष ने यह भी बताया कि राज्य सरकार ने स्वयं हाईकोर्ट से 24 जून तक का समय मांगा था ताकि वह आरक्षण से जुड़ी प्रक्रियाओं को अंतिम रूप दे सके। लेकिन इसके बावजूद, उससे पहले ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई, जो सीधे-सीधे अदालत की प्रक्रिया का उल्लंघन है। उन्होंने सवाल किया, “जब मामला न्यायालय में लंबित था, तब किस आधार पर चुनावों की घोषणा की गई? क्या यह अदालत की अवमानना नहीं है?”
उन्होंने पंचायती राज सचिव के उस बयान पर भी कड़ा ऐतराज़ जताया, जिसमें सचिव ने कहा था कि शासनादेश की नोटिफिकेशन प्रक्रिया “गतिमान” है। आर्य ने इसे जनता को गुमराह करने वाला और भ्रामक बताया। उन्होंने कहा कि कोई भी शासनादेश तब तक प्रभावी नहीं माना जा सकता जब तक वह विधिवत रूप से उत्तराखंड राजपत्र (गजट) में प्रकाशित न हो जाए।
आर्य ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह पूरा मामला पारदर्शिता की कमी और संवैधानिक प्रक्रियाओं की अनदेखी का परिचायक है। “हाईकोर्ट का हस्तक्षेप यह साबित करता है कि आरक्षण प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं। इससे प्रदेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अविश्वास की स्थिति पैदा होती है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने प्रदेश सरकार से इस मामले में जवाबदेही तय करने की मांग की और कहा कि जनता को यह स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए कि आखिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से इस तरह खिलवाड़ क्यों किया गया। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि सरकार ने समय रहते स्थिति स्पष्ट नहीं की और आवश्यक कानूनी प्रक्रियाएं पूरी नहीं कीं, तो विपक्ष इस मुद्दे को सड़क से सदन तक उठाएगा।
निष्कर्षतः, आर्य का बयान न केवल सरकार की आरक्षण नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि पंचायत चुनावों की पूरी वैधानिकता को लेकर एक नई बहस की शुरुआत भी करता है। हाईकोर्ट की रोक के बाद यह मामला अब केवल कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी और अधिक संवेदनशील होता जा रहा है।