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Wednesday, July 9, 2025
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पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज, बरसात में पहली बार मतदान की चुनौती

प्रदेश में अगले महीने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी, बरसात बनी बड़ी चुनौती
2024 में समाप्त हो चुका है पंचायतों का कार्यकाल, अब तक दो बार प्रशासकों की नियुक्ति

प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों का कार्यकाल वर्ष 2024 में ही समाप्त हो चुका है। चुनाव समय पर न होने के चलते अब तक दो बार प्रशासकों की नियुक्ति की जा चुकी है। पहले निवर्तमान जनप्रतिनिधियों को प्रशासक बनाया गया और अब प्रशासनिक अधिकारियों को पंचायतों की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अब चुनाव में और देरी न करने के संकेत दिए गए हैं। शासन द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, पंचायत चुनाव आगामी माह जुलाई में कराए जाने की योजना है। इस संबंध में आरक्षण निर्धारण की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है।

बरसात में पहली बार हो सकते हैं पंचायत चुनाव

स्थानीय जनप्रतिनिधियों और पंचायत संगठनों का मानना है कि यदि चुनाव जुलाई में होते हैं तो यह राज्य गठन के बाद पहला मौका होगा जब बरसात के दौरान त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए जाएंगे। इससे न केवल मतदान प्रतिशत प्रभावित हो सकता है, बल्कि दुर्गम क्षेत्रों में मतदान दलों की पहुंच भी बड़ी चुनौती होगी।

प्रदेश संयोजक पंचायत संगठन जगत मार्तोलिया ने कहा कि बरसात के मौसम में खासकर पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली जैसे पर्वतीय जिलों में नदियों और नालों के उफान पर रहने से आवाजाही ठप हो जाती है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान कराना आसान नहीं होगा।

2019 में 69.59 प्रतिशत हुआ था मतदान

गौरतलब है कि वर्ष 2019 में अक्तूबर माह में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराए गए थे। उस समय 69.59 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। इसमें सबसे अधिक मतदान ऊधमसिंह नगर जिले में 84.26 प्रतिशत और सबसे कम अल्मोड़ा में 60.04 प्रतिशत रहा था। पर्वतीय जिलों में मतदान प्रतिशत पहले से ही अपेक्षाकृत कम रहता है। पौड़ी में 61.79 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 62.98 प्रतिशत और टिहरी में 61.19 प्रतिशत मतदान हुआ था।

राज्य निर्वाचन आयुक्त ने दिए संकेत

राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि बारिश के बावजूद चुनाव को अधिक समय तक टालना संभव नहीं है। उन्होंने कहा, “चुनाव की तिथि तय करने से पहले जिलाधिकारियों से बातचीत की जाएगी और एक कंटीजेंसी प्लान तैयार किया जाएगा। बारिश, दुर्गम क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों और लॉजिस्टिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।”

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