हाईकोर्ट का अहम फैसला: नेट और पीएचडी धारक पत्नी भी भरण–पोषण की हकदार
नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि पत्नी नेट और पीएचडी जैसी उच्च शैक्षिक योग्यता रखती है, तब भी वह भरण-पोषण की हकदार हो सकती है, यदि वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है। कोर्ट ने यह टिप्पणी हरिद्वार निवासी एक व्यक्ति की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए की। पति ने हरिद्वार की पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे पत्नी और बेटी को 10-10 हजार रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने को कहा गया था।
कोर्ट ने पति की आपत्ति को किया खारिज
यह मामला हरिद्वार निवासी सुनील रावण द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर आपत्ति जताई थी। न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने यह स्पष्ट किया कि पत्नी की उच्च शैक्षिक योग्यता मात्र इस आधार पर भरण-पोषण से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि वह वास्तव में किसी रोजगार में है और स्वयं का भरण-पोषण करने में सक्षम है।
याचिकाकर्ता सुनील ने दलील दी कि उनकी पत्नी पीएचडी है और सहायक प्रोफेसर पद के लिए यूजीसी-नेट भी उत्तीर्ण कर चुकी है। ऐसे में वह सक्षम है नौकरी करने की, लेकिन फिर भी वह जानबूझकर कार्य नहीं कर रही और अदालत से भरण-पोषण मांग रही है। इसके विपरीत, पत्नी के वकील ने यह तर्क दिया कि महिला की वर्तमान में कोई आय नहीं है और पति की आमदनी अच्छी-खासी है, बावजूद इसके उसे सिर्फ 20,000 रुपये (10-10 हजार पत्नी व बेटी के लिए) देने का आदेश दिया गया, जो उनकी कुल आय के एक तिहाई से भी कम है।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सभी पहलुओं पर विचार करते हुए अंतरिम भरण-पोषण का आदेश पारित किया है और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश अंतरिम प्रकृति का है और मुख्य याचिका पर अंतिम निर्णय अभी लंबित है।
पत्नी की ओर से दायर आवेदन में अंतरिम राशि बढ़ाने की मांग की गई थी, जबकि पति ने पत्नी और बेटी दोनों के भरण-पोषण को पूरी तरह से खारिज करने की मांग की थी। सुनील द्वारा दिए गए हलफनामे के अनुसार, उसकी मासिक आय ₹92,805 है, लेकिन फिर भी अदालत ने उसे केवल ₹20,000 की ही अंतरिम राशि अदा करने का आदेश दिया।
कोर्ट की टिप्पणी: केवल योग्यता नहीं, रोजगार भी ज़रूरी
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल डिग्री या योग्यता के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि कोई महिला आत्मनिर्भर है। यदि उसके पास नियमित आमदनी का कोई स्रोत नहीं है, तो उसे भरण-पोषण मिलना न्यायोचित है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पति की आय पर्याप्त है और पत्नी आर्थिक रूप से निर्भर है, तो उसे सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए वित्तीय सहायता देना पति का कर्तव्य बनता है।
यह फैसला महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को लेकर एक अहम संकेत है कि केवल शैक्षिक योग्यता के आधार पर उनके भरण-पोषण के अधिकार को नकारा नहीं जा सकता।