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Friday, March 28, 2025
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पुलिस विभाग की बड़ी क्षति, आईपीएस अधिकारी केवल खुराना का निधन

देहरादून। लंबे समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लड़ रहे तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी केवल खुराना रविवार को जिंदगी की जंग हार गए। उन्होंने दिल्ली के साकेत स्थित एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। केवल खुराना वर्ष 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी थे और अपनी कड़ी मेहनत, तेज निर्णय क्षमता और अनुशासनप्रियता के लिए जाने जाते थे। वे वर्तमान में आईजी ट्रेनिंग के पद पर कार्यरत थे और पुलिस प्रशिक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

सख्त अनुशासन और प्रभावी नेतृत्व

केवल खुराना की गिनती उन अधिकारियों में होती थी, जो न केवल अपने कार्य के प्रति समर्पित थे, बल्कि समाज में बदलाव लाने की सोच भी रखते थे। वे एक कुशल प्रशासक के साथ-साथ एक संवेदनशील अधिकारी भी थे। पुलिसिंग को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए उन्होंने कई सुधार किए।

वर्ष 2013 में वे उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पुलिस कप्तान के रूप में नियुक्त किए गए थे। इस दौरान उन्होंने शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए कई बड़े फैसले लिए। आज भी देहरादून में उनके उन प्रयासों की चर्चा होती है। उन्होंने सड़कों पर बढ़ते यातायात के दबाव को देखते हुए कई सख्त नियम लागू किए, जिनसे दुर्घटनाओं में कमी आई।

उत्तराखंड के पहले यातायात निदेशक

केवल खुराना की काबिलियत को देखते हुए उन्हें उत्तराखंड के पहले यातायात निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने लगभग चार वर्षों तक यातायात व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए कई अहम कदम उठाए। उन्होंने जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यातायात नियमों में बदलाव किए और पुलिसकर्मियों को आधुनिक तकनीकों से लैस किया।

उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें प्रतिष्ठित फिक्की अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनके कार्यों की सराहना का प्रमाण था। इसके बाद उन्हें जनरल कमांडेंट होमगार्ड के पद पर नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने होमगार्ड विभाग को अधिक संगठित और प्रभावी बनाया।

आईजी ट्रेनिंग के रूप में विशेष योगदान

केवल खुराना को जब आईजी ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दी गई, तो उन्होंने पुलिस प्रशिक्षण प्रणाली को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल कीं। उन्होंने पुलिस ट्रेनिंग पाठ्यक्रम में बदलाव किए और आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) तथा सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) में मौजूद उर्दू शब्दों को हिंदी में बदलकर आम बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत किया। यह एक बड़ी पहल थी, जिससे पुलिसकर्मियों को कानून की धाराओं को समझने में आसानी हुई।

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