उत्तराखंड में उपभोक्ता को देर से मिल रहा न्याय: उपभोक्ता आयोगों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
देहरादून। उत्तराखंड में उपभोक्ताओं को न्याय मिलने में हो रही देरी चिंता का विषय बन गई है। केसों के लंबित रहने और समय पर राहत न मिलने से उपभोक्ता निराश हो रहे हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत तय समयसीमा में केसों का निपटारा नहीं हो पा रहा, जिससे उपभोक्ता आयोगों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है कि राज्य उपभोक्ता आयोग समेत जिला उपभोक्ता आयोगों में वर्षों से लंबित मामले न्याय की धीमी प्रक्रिया की पोल खोल रहे हैं। उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के लिए बनाए गए आयोगों में कई ऐसे केस हैं, जो 10 साल से अधिक समय से फैसले के इंतजार में हैं।
10 साल से अधिक पुराने मामले लंबित
काशीपुर निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के लोक सूचना अधिकारी से राज्य और जिला आयोगों द्वारा किए गए उपभोक्ता मामलों के निस्तारण से संबंधित विवरण मांगा था। राज्य आयोग की प्रशासनिक अधिकारी वंदना शर्मा ने अपने पत्रांक 121 के तहत इस विवरण की सत्यापित फोटो प्रति उपलब्ध कराई।
वर्ष 2024 की वार्षिक विवरणी के अनुसार, राज्य आयोग में 29 नए केस फाइल हुए, जिनमें 26 प्रथम अपील और 3 उपभोक्ता शिकायतें शामिल थीं। हालांकि, आयोग ने वर्ष 2024 में फाइल हुए उपभोक्ता मामलों की तुलना में चार गुना अधिक 12 उपभोक्ता शिकायतों और 11 गुना अधिक 290 प्रथम अपीलों का निपटारा किया। बावजूद इसके, वर्ष के अंत तक 844 प्रथम अपीलें और 62 उपभोक्ता शिकायतें लंबित रह गईं।
प्रदेश के 13 जिलों में स्थित उपभोक्ता आयोगों में वर्ष 2024 में कुल 682 केस फाइल हुए, लेकिन मात्र 282 मामलों का ही निपटारा हो पाया, जो कि कुल फाइल हुए मामलों का केवल 41% है। वहीं, जिला आयोगों में कुल 3,985 केस लंबित रह गए, जिनमें से कई मामले वर्षों पुराने हैं।
राज्य आयोग में लंबित मामलों की स्थिति:
-
10 वर्ष से अधिक पुराने – 9 मामले
-
10 वर्ष पुराने – 18 मामले
-
7 वर्ष पुराने – 28 मामले
-
5 वर्ष पुराने – 1 मामला
-
2 वर्ष पुराने – 2 मामले
-
6 माह से 1 वर्ष पुराने – 3 मामले
प्रथम अपीलों की स्थिति:
-
10 वर्ष से अधिक पुरानी – 35
-
10 वर्ष पुरानी – 106
-
7 वर्ष पुरानी – 253
-
5 वर्ष पुरानी – 161
-
3 वर्ष पुरानी – 194
-
2 वर्ष पुरानी – 81
-
6 माह से 1 वर्ष पुरानी – 13
-
6 माह से कम पुरानी – 12
जिला उपभोक्ता आयोगों में भी हालात चिंताजनक
प्रदेश के 13 जिलों में स्थित उपभोक्ता आयोगों में लंबित 3,985 उपभोक्ता मामलों में भी देरी साफ नजर आ रही है:
-
10 वर्ष से अधिक पुराने – 29 मामले
-
10 वर्ष पुराने – 75 मामले
-
7 वर्ष पुराने – 310 मामले
-
5 वर्ष पुराने – 653 मामले
-
3 वर्ष पुराने – 1,339 मामले
-
2 वर्ष पुराने – 792 मामले
-
6 माह से 1 वर्ष पुराने – 304 मामले
-
6 माह से कम पुराने – 427 मामले
उपभोक्ता आयोगों में केस दर्ज करने में भारी गिरावट
उपभोक्ता मामलों के बढ़ते लंबित रहने और न्याय मिलने में देरी की वजह से लोग उपभोक्ता आयोगों की शरण लेने से बचने लगे हैं। वर्ष 2016 में राज्य उपभोक्ता आयोग में 292 केस फाइल हुए थे, जो 2017 में घटकर 169 रह गए। वर्ष 2018 में 292, वर्ष 2019 में 468, वर्ष 2020 में 170, वर्ष 2021 में 205, वर्ष 2022 में 322, वर्ष 2023 में 116 और वर्ष 2024 में केवल 29 केस फाइल हुए, जो पिछले 9 वर्षों में सबसे कम है।
इसी प्रकार, जिला उपभोक्ता आयोगों में भी केस दर्ज करने की संख्या घटी है। वर्ष 2016 में 1,462 केस दर्ज हुए थे, जो 2017 में घटकर 1,086 रह गए। वर्ष 2022 में यह संख्या 1,859 तक बढ़ी, लेकिन 2023 में 970 और 2024 में मात्र 682 केस दर्ज हुए।
तीन माह में निपटारा करने का प्रावधान, फिर भी लंबी देरी
उपभोक्ता संस्था माकाक्स के केंद्रीय अध्यक्ष व सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 और इससे पहले लागू उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत सभी उपभोक्ता मामलों का निपटारा अधिकतम तीन माह में करने का प्रावधान है। अगर किसी केस में प्रयोगशाला परीक्षण की आवश्यकता होती है, तो यह समयसीमा पांच माह निर्धारित है।
लेकिन वास्तविकता यह है कि उपभोक्ता आयोग इन मामलों का निपटारा तय समयसीमा के भीतर नहीं कर पा रहे हैं। कई मामलों में उपभोक्ताओं की बजाय विपक्षी पक्ष को अधिक राहत दी जा रही है, जिससे उपभोक्ता आयोगों की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर
शीघ्र न्याय न मिलना, न्याय से इनकार करने के समान होता है। राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों को अपनी अधीक्षण शक्तियों का प्रयोग करके न्याय प्रक्रिया को तेज करना चाहिए। इसके लिए माकाक्स भी राष्ट्रीय और राज्य आयोगों से अनुरोध करेगी, ताकि उपभोक्ताओं को जल्द और निष्पक्ष न्याय मिल सके।
अगर उपभोक्ताओं का भरोसा फिर से जीतना है, तो उपभोक्ता आयोगों को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा और लंबित मामलों को जल्द से जल्द निपटाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।