नैनीताल दुष्कर्म कांड: एसएसपी को जांच की निगरानी के कोर्ट आदेश
हर 15 दिन में हाईकोर्ट को देनी होगी प्रगति रिपोर्ट
पुलिस कार्यशैली की सराहना, प्रशासन व पालिका पर फिर फटकार
नैनीताल में एक नाबालिग बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को स्वयं मामले की जांच की निगरानी करने और प्रत्येक 15 दिन में प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
हाईकोर्ट ने इस संवेदनशील मामले में पुलिस की अब तक की कार्यप्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि संकट के समय पुलिस की सक्रिय भूमिका के कारण हालात बिगड़ने से बचे। वहीं, कोर्ट ने नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही पर दोबारा नाराजगी जताई, यह कहते हुए कि अगर उनकी भूमिका ज़िम्मेदार होती, तो पुलिस पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ता।
एसएसपी ने दी वर्चुअल उपस्थिति, कोर्ट को दी गई जांच की स्थिति की जानकारी
सुनवाई के दौरान नैनीताल के एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा वर्चुअल माध्यम से अदालत के समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि आरोपी पर पीड़िता की जाति के आधार पर अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) अधिनियम की धाराएं भी जोड़ दी गई हैं। साथ ही, मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच अब डिप्टी एसपी स्तर के अधिकारी से कराई जा रही है।
कोर्ट ने इस पर संतोष जताते हुए एसएसपी को निर्देशित किया कि वे पूरे मामले की विवेचना पर व्यक्तिगत निगरानी रखें और नियमित रूप से प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
पीड़ित पक्ष ने सीबीआई जांच और आरोपी के परिजनों पर कार्रवाई की मांग उठाई
पीड़ित पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शिव भट्ट ने अदालत में एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर यह मांग की कि दुष्कर्म के इस मामले में आरोपी उस्मान के परिवार को भी अभियुक्त बनाया जाए। याचिका में कहा गया कि घटना एक गैराज में हुई थी, जहाँ पीड़िता को चाकू दिखाकर डराया गया। आरोप है कि आरोपी के परिजन साक्ष्य मिटाने, खून के धब्बे साफ करने और पीड़िता को धमकी देने जैसे गंभीर अपराधों में शामिल रहे हैं। इसके बावजूद पुलिस उनके डीएनए और फिंगरप्रिंट नहीं ले सकी है और ना ही उनकी मोबाइल लोकेशन की जाँच हुई है।
अधिवक्ता ने पॉक्सो अधिनियम की धारा 16, 29 और 30 के तहत आरोपी के परिजनों को भी अभियुक्त बनाए जाने और पूरे मामले की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग अदालत से की।
याचिका में यह भी कहा गया कि अब तक पीड़िता को किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया गया है। हाईकोर्ट ने इस पहलू पर भी संज्ञान लिया और राज्य सरकार से इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करने को कहा।
आरोपी की पत्नी की याचिका पर कोर्ट ने दी प्रतिक्रिया
मामले में आरोपी उस्मान की पत्नी हुस्न बानो की ओर से सुरक्षा दिए जाने और नोटिस का जवाब देने के लिए तीन महीने का समय दिए जाने की मांग की गई थी। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि जब याचिका पहले ही वापस ली जा चुकी है, तो अब उसकी कोई उपयोगिता नहीं रह गई है।
नगर पालिका को फिर से कोर्ट की फटकार, नोटिस निरस्त करने की जानकारी दी
इस मामले में यह पहला मौका नहीं है जब नगर पालिका और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कोर्ट ने सवाल उठाए हों। पहले भी हाईकोर्ट ने पालिका के ईओ और मजिस्ट्रेट की भूमिका को लेकर कड़ी नाराजगी जताई थी। मंगलवार को हुई सुनवाई में नगर पालिका की ओर से बताया गया कि आरोपी उस्मान सहित कुल 62 लोगों को जारी किए गए नोटिस अब निरस्त कर दिए गए हैं।
कोर्ट ने साफ कहा कि पालिका और प्रशासन की असंवेदनशीलता के कारण कानून-व्यवस्था पर दबाव बढ़ा, जिसका नतीजा पुलिस को झेलना पड़ा।
हाईकोर्ट का यह हस्तक्षेप इस बात का स्पष्ट संकेत है कि न्यायपालिका इस मामले की गंभीरता को लेकर सतर्क है और पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाना चाहती है। एसएसपी को जांच की सीधी निगरानी की जिम्मेदारी सौंपना और प्रगति रिपोर्ट की मांग करना, पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा सकता है। वहीं, यह मामला राज्य के प्रशासनिक तंत्र के भीतर मौजूद खामियों को भी उजागर करता है, जिनका समय रहते सुधार किया जाना आवश्यक है।