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Wednesday, July 9, 2025
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दून अस्पताल में डॉक्टरों की मेहनत से शिशु को मिली नई जिंदगी

दून अस्पताल में बिना चीरा लगाए बालून तकनीक से नवजात शिशु की जटिल हृदय सर्जरी में मिली सफलता

बिना चीरा लगाए तकनीक से किया गया हार्ट ऑपरेशन

देहरादून। दून अस्पताल में चिकित्सा विज्ञान ने एक बार फिर अद्भुत करिश्मा कर दिखाया है मात्र दो महीने के नवजात शिशु की जटिल हृदय सर्जरी बिना किसी चीरे के सफलतापूर्वक की गई है। यह उपलब्धि न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित करती है, बल्कि राज्य के सरकारी चिकित्सा तंत्र की दक्षता, विशेषज्ञता और समर्पण का भी उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।

हरबर्टपुर के निवासी उस्मान अपने नवजात बेटे को लगभग एक महीने पहले देहरादून लेकर आए, जब बच्चे में अचानक सांस लेने में तकलीफ और अस्वस्थता के लक्षण दिखाई देने लगे। प्राथमिक जांच में डॉक्टरों ने निमोनिया की पुष्टि की, साथ ही हृदय की भी जांच कराने की सलाह दी गई। बच्चे का ईकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram) कराया गया, जिसमें यह पता चला कि बच्चे के दिल में जन्मजात एक छेद (PDA) है और ऑर्टिक वाल्व में गंभीर संकुचन (Severe Aortic Stenosis) है। यह स्थिति बच्चे के लिए अत्यंत जोखिमपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यह दिल की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है और ऑक्सीजनयुक्त रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती है।

बच्चे को दून अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग की ओपीडी में लाया गया, जहां प्रारंभिक परीक्षण के बाद चिकित्सकों ने सर्जरी की आवश्यकता जताई। लेकिन पहले बच्चे के निमोनिया का इलाज प्राथमिकता पर रखा गया। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. तन्वी सिंह की देखरेख में बच्चे का अस्पताल में कई दिनों तक इलाज किया गया। इस दौरान बच्चे की हालत में कुछ सुधार हुआ, लेकिन वह ऑक्सीजन सपोर्ट से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया। बच्चे की हालत नाजुक होने के कारण डॉक्टरों ने सर्जरी को अपरिहार्य मानते हुए इसके लिए हरी झंडी दी।

इस अत्यंत जटिल सर्जरी में बच्चे के दिल के सिकुड़े हुए ऑर्टिक वाल्व को बालून तकनीक के माध्यम से बिना किसी बाहरी चीरे के खोला गया। इस प्रक्रिया को बालून ऑर्टिक वाल्वोटॉमी (Balloon Aortic Valvotomy) कहा जाता है, जो अत्याधुनिक और न्यूनतम आक्रामक (Minimally Invasive) तकनीक है। यह प्रक्रिया करीब एक घंटे तक चली और इसमें एनेस्थीसिया विभाग के प्रोफेसर डॉ. अतुल सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दोनों हृदय रोग एक-दूसरे को जटिल बना रहे थे – डॉ. अमर उपाध्याय

कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अमर उपाध्याय ने बताया कि बच्चे के दिल में दो जन्मजात समस्याएं एक-दूसरे को और अधिक जटिल बना रही थीं। उन्होंने बताया कि पहले हार्ट के विभिन्न चैंबरों से रक्त के नमूने लेकर बच्चे की हृदय की सटीक स्थिति का विश्लेषण किया गया। इसके बाद सावधानीपूर्वक बालून तकनीक के द्वारा वाल्व को खोला गया, जिससे रक्त प्रवाह सुचारू रूप से बहने लगा। डॉ. अमर उपाध्याय ने यह भी बताया कि ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा और बच्चे की हालत में अब काफी सुधार हुआ है। बच्चे को कल अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी।

इस सफल ऑपरेशन में डॉ. ऋचा, डॉ. साई जीत, डॉ. अस्मिता, डॉ. शोएब और डॉ. अल्फिशा जैसे युवा और होनहार डॉक्टरों की टीम ने भी अपने उत्कृष्ट कौशल और समर्पण से इस चुनौतीपूर्ण कार्य को संभव बनाया। उनकी मेहनत और टीम वर्क ने इस जटिल सर्जरी को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई

यह सफलता न केवल दून अस्पताल के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह राज्य के अन्य सरकारी अस्पतालों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी है। यह दर्शाती है कि सरकार के चिकित्सा तंत्र में आधुनिक तकनीक, विशेषज्ञता और समर्पित टीम के जरिए विश्वस्तरीय इलाज संभव है। चिकित्सा क्षेत्र में इस तरह की प्रगतियां आने वाले समय में और भी मरीजों के जीवन बचाने में सहायक होंगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि बालून ऑर्टिक वाल्वोटॉमी जैसी न्यूनतम आक्रामक तकनीक से छोटे बच्चों और नवजातों में हृदय संबंधित जटिलताओं का इलाज अधिक सुरक्षित और प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। यह तकनीक पारंपरिक सर्जरी की तुलना में कम दर्दनाक होती है, रिकवरी जल्दी होती है और संक्रमण का खतरा भी कम होता है।

दून अस्पताल की टीम ने यह भी बताया कि वे भविष्य में इस तरह के और भी कठिन केसों में इस तकनीक का उपयोग कर और ज्यादा सफलता हासिल करने के लिए प्रयासरत हैं। अस्पताल में लगातार नई तकनीकों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए चिकित्सकों की विशेषज्ञता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि प्रदेश के सभी मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मिल सके।

इस पूरे मामले में बच्चे के माता-पिता ने अस्पताल की टीम का हार्दिक धन्यवाद किया है और कहा कि सरकारी अस्पताल में इतनी बेहतर सुविधा और उपचार मिलने से उनका भरोसा और भी मजबूत हुआ है। वे उम्मीद करते हैं कि राज्य के और भी बच्चे इस तरह के उन्नत इलाज से स्वस्थ जीवन पा सकेंगे।

दून अस्पताल की यह उपलब्धि चिकित्सा जगत में एक मिसाल के तौर पर जानी जाएगी और आने वाले वर्षों में यह पहल उत्तराखंड के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए नई दिशा तय करेगी

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