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Saturday, April 19, 2025
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नवरात्रि अष्टमी पर सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में होगा विशेष पूजन

सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में श्री यंत्र महापूजन, गूंजीं जनकल्याण की कामनाएँ

मंदिर
महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी द्वारा श्री यंत्र की स्थापना, होगा भव्य आयोजन

हरिद्वार चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर हरिद्वार स्थित चंडीघाट के सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में मां दुर्गा की अष्टमी पर एक भव्य और आध्यात्मिक आयोजन होने जा रहा है। निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज शनिवार, 5 अप्रैल को सायं 5:30 बजे विशेष पूजा-अर्चना के साथ श्री यंत्र की स्थापना करेंगे। यह पूजन मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्ति और विश्व कल्याण की कामना के लिए किया जाएगा।

दक्षिण भारत की प्राचीन परंपरा को उत्तर भारत में मिला विस्तार

महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि दक्षिण भारत में श्री यंत्र की स्थापना और पूजन की परंपरा अत्यंत प्राचीन रही है। अब उसी परंपरा को उत्तर भारत के प्रसिद्ध सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में दो वर्षों से अपनाया जा रहा है। यह प्रयास सनातन संस्कृति की व्यापकता और आध्यात्मिक उन्नयन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

मंदिरहै।

विशेष पूजन के लिए जुटेंगे विद्वान ब्राह्मण और श्रद्धालु

श्री यंत्र की स्थापना के अवसर पर कई विद्वान ब्राह्मण और आचार्य भी शामिल होंगे जो वेद मंत्रों के साथ पूजन संपन्न कराएंगे। श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पूजन में भाग लेंगे और श्री यंत्र के समक्ष मनोकामना पूर्ति के लिए मां दुर्गा की आराधना करेंगे। मंदिर को फूलों, दीपों और विविध पूजा सामग्री से सजाया जाएगा। सैकड़ों दीपकों की रौशनी में यह पूजन अत्यंत भव्य और दिव्य रूप धारण करेगा।

इस विशेष पूजन और श्री यंत्र स्थापना का सीधा प्रसारण भी शनिवार को सायं 5:30 बजे से किया जाएगा, जिससे देश-विदेश में रहने वाले श्रद्धालु भी इस पावन अवसर से जुड़ सकें और पुण्य लाभ प्राप्त कर सकें।

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श्री यंत्र: एक दिव्य ज्यामितीय संरचना

महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने बताया कि श्री यंत्र एक विशेष ज्यामितीय संरचना है जो संपूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जा और सृष्टि के रहस्य को समाहित करती है। यह मंत्रों का भौतिक रूप है और इसका पूजन मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ माध्यम माना गया है।
शास्त्रों में इसे ‘यंत्रराज’ कहा गया है, जो सभी यंत्रों का मूल और केंद्र है। श्री यंत्र समस्त शक्तियों, सिद्धियों और कल्याणकारी तत्वों का द्वार है।

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आदि शंकराचार्य और श्री यंत्र की परंपरा

महामंडलेश्वर ने बताया कि आदि शंकराचार्य ने भी श्री यंत्र की महिमा को स्थापित किया था। उन्होंने मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), मूकाम्बिका मंदिर और कामाक्षी अंबा मंदिर (कांची) में श्री यंत्र की स्थापना की थी। एक अन्य यंत्र का स्थान आज भी अज्ञात है। साथ ही, उन्होंने अपने चार प्रमुख शिष्यों को चार श्रीयंत्र भी सौंपे, जो आज भी चारों प्रमुख शंकराचार्य आश्रमों में पूजित हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर भी श्रीयंत्र पर ही अवस्थित है, और यही कारण है कि वह विश्व का सबसे धनी मंदिर है। अंबाजी माता मंदिर में स्थित श्री यंत्र की फोटोग्राफी भी वर्जित है, यह इसकी पवित्रता और गुप्तता का प्रमाण है। शास्त्रों में वर्णित है कि श्री यंत्र मनुष्य को चारों पुरुषार्थ – अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष – प्रदान करने वाला है। यह न केवल ब्रह्मांड की रचना और विकास का प्रतीक है, बल्कि मानव शरीर का भी आध्यात्मिक प्रतिरूप माना जाता है।

श्री यंत्र की स्थापना और पूजन की शास्त्रीय विधि

श्रीयंत्र की स्थापना किसी शुभ मुहूर्त में आचार्य की देखरेख में करना चाहिए। इसे चांदी, स्वर्ण या स्फटिक पर बनवाना श्रेष्ठ माना गया है। अन्य धातुओं पर बने यंत्रों को हेय माना गया है। फैक्ट्री में बने यंत्रों को शास्त्रों में निषेध बताया गया है और इन्हें घर में स्थापित करने से बचना चाहिए। यदि धातु का यंत्र न बनवा सकें, तो शुभ मुहूर्त में रेशम के वस्त्र पर श्री यंत्र बनवा सकते हैं, परंतु उसे एक वर्ष बाद बदलना आवश्यक होता है।

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उत्तराखंड और विश्व कल्याण की कामना से होगा पूजन

महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी ने कहा कि यह पूजन केवल मंदिर तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसकी ऊर्जा और प्रभाव संपूर्ण उत्तराखंड और पूरे विश्व में कल्याणकारी ऊर्जा के रूप में प्रसारित होगी। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे इस पूजन में सहभागी बनकर आध्यात्मिक लाभ उठाएं और अपने जीवन को समृद्ध करें

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