वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन का विरोध: पछवादून के मुस्लिम बहुल इलाकों में 15 मिनट तक किया गया अंधकार
देहरादून (सहसपुर): केंद्र सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड कानून में किए गए संशोधन के विरोध में बुधवार रात पछवादून के मुस्लिम बहुल इलाकों में लोगों ने अनोखे ढंग से अपना विरोध दर्ज कराया। सहसपुर, खुशहालपुर, केदारावाला, लक्ष्मीपुर, सिंघनीवाला, बड़ा रामपुर जैसे क्षेत्रों में रात 9 बजे घरों और दुकानों की लाइटें बुझाकर करीब 15 मिनट तक अंधेरा किया गया।
यह विरोध ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वान पर किया गया था, जिसमें देशभर के मुस्लिम समुदाय से अपील की गई थी कि वे संशोधित वक्फ कानून के विरोध में 15 मिनट तक अपने-अपने इलाकों में अंधेरा कर शांतिपूर्ण तरीके से अपना रोष प्रकट करें।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वक्फ संपत्तियों की हिफाजत और मुस्लिम समाज की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने के लिए बने इस कानून में संशोधन से उनकी धार्मिक आज़ादी और संपत्ति अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विरोध करने वाले लोगों ने इसे ‘मौलिक अधिकारों पर हमला’ करार दिया है।
प्रदर्शन के दौरान अंधेरा करने की कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिनमें दर्जनों घरों और गलियों में एक साथ लाइटें बंद करते हुए देखा जा सकता है। कई लोगों ने इस विरोध को शांतिपूर्ण और सशक्त माध्यम बताया जिससे सरकार का ध्यान इस संवेदनशील मुद्दे की ओर आकर्षित किया जा सके।
थाना प्रभारी सहसपुर शंकर सिंह बिष्ट ने बताया कि किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए पुलिस की गश्त रातभर जारी रही। क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनी रही और किसी भी प्रकार की कानून व्यवस्था भंग होने की कोई सूचना नहीं मिली।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भूमिका
बोर्ड ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए कानून में ऐसे प्रावधान जोड़ रही है जो मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों के खिलाफ हैं। बोर्ड ने यह भी कहा है कि अगर संशोधन वापस नहीं लिया गया तो देशभर में चरणबद्ध तरीके से विरोध तेज किया जाएगा।
स्थानीय समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों ने भी वक्फ कानून में संशोधन पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि ऐसी किसी भी नीति से पहले व्यापक चर्चा और सभी पक्षों से राय लेना आवश्यक है।
वक्फ कानून में संशोधन को लेकर मुस्लिम समाज में गहरी असंतोष की भावना उभर रही है, जिसे अब सार्वजनिक रूप से जाहिर किया जा रहा है। हालांकि विरोध शांतिपूर्ण रहा, लेकिन सरकार और समाज के बीच संवाद की जरूरत अब पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।