गोल्डन कार्ड योजना पर संकट, मरीजों के लिए बढ़ी मुश्किलें
गोल्डन कार्ड योजना के तहत कर्मचारियों, पेंशनरों और उनके आश्रितों को मिलने वाली कैशलेस इलाज सुविधा पर गंभीर संकट मंडराने लगा है। योजना में फंड की भारी कमी के कारण सूचीबद्ध अस्पतालों की देनदारी 100 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है, जिसके चलते कई बड़े अस्पताल अब इलाज से इनकार कर रहे हैं।
अस्पतालों का बकाया बढ़ा, कैशलेस इलाज पर खतरा
सरकार द्वारा वर्ष 2021 में शुरू की गई इस योजना के तहत कर्मचारियों और पेंशनरों के वेतन व पेंशन से हर माह अंशदान लिया जाता है, जिससे हर साल करीब 120 करोड़ रुपये जमा होते हैं। लेकिन इलाज पर होने वाला वार्षिक खर्च 300 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, जिससे फंड का भारी संकट पैदा हो गया है।
स्थिति यह हो गई है कि कई प्रमुख अस्पतालों ने इलाज करने से इनकार करना शुरू कर दिया है। देहरादून स्थित हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट ने पहले ही गोल्डन कार्ड के तहत इलाज करने से इंकार कर दिया है। इसके अलावा, अन्य प्रमुख निजी अस्पतालों ने भी राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण को स्पष्ट अल्टीमेटम दे दिया है कि यदि जल्द भुगतान नहीं हुआ तो वे भी योजना के तहत मरीजों को भर्ती नहीं करेंगे।
कर्मचारियों और पेंशनरों में आक्रोश
कैशलेस इलाज की यह योजना लाखों सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों के लिए एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सुरक्षा कवच थी, लेकिन अब इस संकट के कारण वे इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। कई मरीजों को मजबूरन निजी अस्पतालों में भारी भरकम बिल चुकाकर इलाज करवाना पड़ रहा है, जिससे आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है।
क्या सरकार उठाएगी ठोस कदम?
गोल्डन कार्ड योजना अंशदायी होने के कारण प्रदेश सरकार इस पर अलग से कोई बजट आवंटित नहीं करती। लेकिन अब जब योजना पर संकट गहरा गया है, तो सरकार की चुप्पी सवाल खड़े कर रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द ही ठोस वित्तीय समाधान नहीं निकाला गया, तो यह योजना पूरी तरह ठप हो सकती है, जिससे लाखों कर्मचारी और उनके परिवार स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हो सकते हैं।
सरकार को चाहिए कि वह इस योजना को बचाने के लिए अतिरिक्त बजट आवंटित करे या फिर केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग करे। अन्यथा, प्रदेश के कर्मचारियों और पेंशनरों को कैशलेस इलाज की यह सुविधा सिर्फ एक अधूरी उम्मीद बनकर रह जाएगी।