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Wednesday, July 9, 2025
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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पंचायत चुनावों पर रोक, आरक्षण में अनियमितता पर नाराजगी

हाईकोर्ट ने आरक्षण की अनिश्चितता पर लगाई पंचायत चुनावों पर अस्थायी रोक

नैनीताल उत्तराखंड में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान फिलहाल के लिए पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह फैसला राज्य सरकार द्वारा आरक्षण व्यवस्था पर स्पष्ट स्थिति पेश न कर पाने के चलते लिया गया। अदालत ने कहा कि जब तक पंचायत चुनावों में आरक्षण की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो जाती, तब तक चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

सरकार की ओर से नीति अस्पष्ट, कोर्ट ने जताई नाराजगी

सोमवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या पंचायत चुनावों में आरक्षण को लेकर कोई ठोस और पारदर्शी नीति मौजूद है? इस पर सरकारी पक्ष संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। अदालत ने यह भी पाया कि सरकार न तो चुनावों में आरक्षण व्यवस्था की नीति स्पष्ट कर पाई और न ही इस बाबत कोई विश्वसनीय विवरण अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर सकी।

कोर्ट ने इस स्थिति पर गहरी नाराजगी जताई और स्पष्ट निर्देश दिए कि राज्य सरकार जल्द से जल्द एक ठोस आरक्षण नीति तैयार कर उसे सार्वजनिक करे। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सामाजिक न्याय अत्यंत आवश्यक हैं, और पंचायतों में आरक्षण इन्हीं सिद्धांतों की मूलभूत आवश्यकता है।

चुनावी प्रक्रिया पर विराम, 12 जिलों में रुकेंगे कार्यक्रम

गौरतलब है कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा हाल ही में पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी कर दी गई थी और प्रदेश के 12 जिलों में नामांकन सहित चुनाव कार्यक्रम की तिथि भी तय कर दी गई थी। निर्वाचन आयोग ने 25 जून से नामांकन प्रक्रिया आरंभ करने की घोषणा की थी, लेकिन अब नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह पूरी चुनावी प्रक्रिया स्थगित कर दी गई है

राज्य निर्वाचन आयोग को भी अब अदालत के निर्देशों के अनुपालन में नई चुनावी रूपरेखा तय करने की आवश्यकता होगी, जो स्पष्ट आरक्षण नीति पर निर्भर होगी।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: विपक्ष हमलावर, सरकार पर उठे सवाल

हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की लापरवाही का प्रमाण बताया है। कांग्रेस और अन्य दलों का कहना है कि पहले ही आरक्षण के निर्धारण में मनमानी और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं, जिन्हें अब न्यायालय की टिप्पणी से मजबूती मिली है।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा, “यह सरकार की प्रशासनिक अक्षमता और संविधानिक दायित्वों के प्रति असंवेदनशीलता को उजागर करता है। पंचायत चुनावों में सामाजिक न्याय की अवधारणा के साथ किया जा रहा खिलवाड़ अब अदालत के सामने आ चुका है।”

प्रशासन पर दबाव, सरकार की अगली रणनीति पर टिकी निगाहें

अब समूचे प्रदेश की निगाहें राज्य सरकार की अगली रणनीति पर टिकी हैं। सरकार को अदालत की नाराजगी को दूर करने के लिए आरक्षण नीति में पारदर्शिता, कानूनी वैधता और सामाजिक न्याय के मापदंडों को ध्यान में रखते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। इसके अलावा राज्य निर्वाचन आयोग को भी भविष्य की कार्यवाही से पहले अदालत के निर्देशों का इंतजार करना होगा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला न केवल पंचायत चुनावों की समयसीमा को प्रभावित करेगा, बल्कि पंचायत स्तर पर सामाजिक समूहों के प्रतिनिधित्व और सत्ता संतुलन के समीकरणों में भी बदलाव ला सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना रोचक होगा कि सरकार इस संवेदनशील विषय पर किस तरह की कानूनी और प्रशासनिक पहल करती है

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